मैं एक BPSC शिक्षिका

पता नहीं लोग जॉब क्यों करना चाहते हैं । पैसे कमाने के लिए, है ना मगर यह यह रास्ता भी कितना कठिन है। अपनी गर्भावस्था के दौरान मैंने BPSC की परीक्षा दी। उस परीक्षाके दौरान कुछ परीक्षार्थियों ने यह अफवाह फैलादी की इस परीक्षा में नेगेटिव मार्किंग है। मेरी तबीयत इतनी खराब थी कि, मुझे यह याद नहीं आया की सरकार के आदेश अनुसार नेगेटिव मार्किंग की बाध्यता समाप्त कर दी गई थी । मैंने नेगेटिव मार्किंग के भ्रम में 20 क्वेशन छोड़ दिए। रिजल्ट की घड़ी आई, इस समय मैं आठ माह गर्भवती थी और मैं जनरल महिला में बॉर्डर लाइन पर उत्तीर्ण हो गई थी। जहां एक तरफ खुशी हुई 5500 रैंक मिला था, 8000 परीक्षार्थियों का चयन हुआ था, जिसमें अन्य सभी वर्ग और श्रेणी शामिल थे। एक पल की खुशी दूसरे ही पल मेरे दुख का कारण बन गई। मेरी समझ में नहीं आ रहा था की काउंसलिंग करवाऊं या ना करवाऊं। इस किंकर्तव्यविमूढ़ता का कारण मेरा अन्य जिला में चयन होना था। इस समय मैं नियोजित शिक्षक के रूप में कार्यरत थी तथा प्राथमिक की कक्षाओं (वर्ग 1 से 5) को पढ़ा रही थी। और मेरी तनख्वाह ₹22000 महीना थी। BPSC TRE 1 में सिलेक्शन हो जाने से तीन लाभ नजर आ रहे थे। पहला प्रोन्नति - क्योंकि मेरा चयन वर्ग 11 12 के अध्यापक के रूप में हुआ था। दूसरा दुगनी तनख्वाह - BPSC द्वारा निर्धारित 44000 ₹ महीना। और सबसे महत्वपूर्ण तीसरा यह की राज कर्मचारी का दर्जा मिलना। मगर इस चयन से होने वाले सबसे बड़ी हानि जो मेरे लिए थी वह थी स्थानांतरण की समस्या। काउंसलिंग का समय नजदीक आया और मेरे प्रसव का भी । काउंसलिंग के अंतिम दिन से ठीक 1 दिन पूर्व मैंने अपने बच्चे को जन्म दिया। सच बताऊं परिवार की इच्छा का सम्मान रखने के लिए, अगले दिन मैं हाथ में कैनुला लगाए, शारीरिक कमजोरी एवं अस्वस्थ अवस्था में किसी तरह 2 घंटो का समय तय कर अन्य जिला पहुंची। अभी कुछ घंटे पहले ही तो मेरी बच्ची दुनिया में आई थी, उसे अपनी फुआ जी (न मेरी मां, न मेरी सासू मां कोई जीवित नहीं है) के पास छोड़ एक जॉब के लिए गई थी। लोग तो मेरी बेटी को लकी बोल रहे थे, भाग्यशाली कह रहे थे । किंतु मेरे मन में ये विचार चल रहे थे, भला यह भी कैसा भाग्य, जो उसके जन्म के कुछ घंटो के बाद ही उसकी मां को उससे दूर जाना पड़े। जितना मैं शारीरिक कष्ट में थी, उससे कहीं ज्यादा मानसिक पीड़ा में भी थी। काउंसलिंग उपरांत वद्यालय अलॉटमेंट की प्रक्रिया शुरू हुई, रेंडमाइजेशन के तर पर मुझे सुदूर ग्रामीण इलाके का विद्यालय दिया गया। मैंने निर्णय लिया कि मैं, इस पोस्ट को ज्वाइन नहीं करूंगी। मैंने अपने प्रधानाध्यापिका जी से, पंचायत सचिव जी से इस बारे में बात की। पंचायत सचिव जी को मेरे निर्णय से कोई दिक्कत नही हुई। किंतु मेरी प्रधानाध्यपी का जी, जो खुद भी एक नियमित शिक्षिका है, उन्होंने कहा कि VC में उन सभी को यह आदेश दिया गया है की जिन भी शिक्षकों की प्रोन्नति हो रही हैं, उनके द्वारा BPSC अध्यापक की पोस्ट ज्वाइन करना अनिवार्य है। दूसरी और मेरे परिवार वालों में खुशी की लहर दौड़ रही थी, वे मुझपर इमोशनली दबाव दे रहे थे की मैं ज्वाइन करूं। अंततोगत्वा सभी औपचारिकताओं को पूर्ण करते हुए मैंने यह पोस्ट ज्वाइन की। जो कि मैं आज भी समझती हूं कि, मेरी बहुत बड़ी भूल थी। नया विद्यालय ज्वाइन करते ही मुझसे कहा गया की मैं 90 दिनों तक मातृत्व अवकाश भी नही ले सकती। एक तरफ मेरी मात्र 18 दिन की बेटी और दूसरी तरफ ठंड का मौसम। इन दिनों असहनीय ठंड पड़ती है, जो इतने छोटे बच्चे के लिए बहुत कष्टदाई समय है। मैं ईश्वर से प्रार्थना करने लगी, की कोई मार्ग निकले। अंततः विद्यालय ज्वाइन की, मैं वापिस नही जा सकती थी। आज मैं दिल से चाहती थी की मेरी नियोजित शिक्षिका की पोस्ट मुझे मिल जाए। मैं बहुत कष्ट में थी, और ये तो बस शुरुआत थी। आज मैं भले ही BPSC शिक्षिका हूं, पर हर दिन मेरा मन मुझे इस बंधन से मुक्त होने की बात कहता है। बहुत कुछ पीछे छूट गया है, बहुत कुछ बिखड़ रहा है। मगर दूसरी ओर इस जॉब से समाज में बहुत इज्जत मिलने लग गई है, मेरे विद्यालय के BPSC अध्यापकों को तो अलग ही लेवल का घमंड है। वो नियोजित शिक्षकों को हेय दृष्टि से देखते हैं। उनके परिश्रम और त्याग की वैल्यू नही समझते, और कुछ नियोजित शिक्षक सक्षमता पास कर अपने ही साथियों को नीचा दिखा रहे हैं। वाह री सोसाइटी, ये क्या हो गया है सबको, आज नैतिक मूल्यों का पतन क्यूं हो रहा है। अब इस सफर में, मैं और कितने दिनों तक टिक पाऊंगी, पता नही। देखते हैं।

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